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हमें गाने वाली बहु पसंद नहीं है…

प्रिया का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। आखिर उसे एक आइडिया आ ही गया। रोज़ दोपहर में नाश्ते के बाद वो‌ और माँ जी छत पर जाते हैं।

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बहु, अगर सम्मान नहीं तो अधिकार नहीं…

सेवा तो दूर सास का सम्मान भी नहीं कर सकती। तुम्हें पेंशन में हिस्सा चाहिये? मेरे पेंशन पे सिर्फ उसका ही अधिकार होगा जो मेरे सम्मान करेगा।

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अब मैं आपके ऐसे खोखले नियम नहीं मानूँगी…

महीने के उन दिनों वो अपने कमरे में ही रहती लेकिन सोनू के होने के बाद सुधा अपनी सास के इस नियम से परेशान हो जाती। 

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बहु, जो भी करना मेरे मरने के बाद करना…

“देख लो बेटा, मुझे तो यह सब पसंद नहीं है। अभी से अपनी मनमर्जी चला रही है। बड़ों का तो कोई लिहाज ही नहीं है।”

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माँजी, आपकी बहु बेटा पैदा करने वाली मशीन नहीं है…

किसने कहा वंश बेटे चलाते हैं? वंश तो बहू चलाती है, जो अपने गर्भ में एक नये जीवन को संचारित करती है वो भी अपने शरीर की सुधबुध खोकर।

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बहु, तुम्हारे हिस्से की रोटी हम क्यूँ बनाएँ…

अब यहां कोई नौकर तो लगा नहीं है, जो तुम्हारे लिए रोटी सेक रखेगा। हमने रोटी सेककर खा ली है। तुम अपने लिए रोटी सेक लेना।”

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