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"बहुएं इतनी बुरी होती हैं तो बेटों की शादी क्यों करते हैं आप? वो भी झूठ बोलकर लड़कियों के परिवार वालों से, नालायक बेटों को लायक बता कर?"
विदाई के समय दुल्हन बनी दिव्या ने माँ की तस्वीर ऐसे सीने से लगा रखी थी कि मानो हर पल माँ को साथ रखना चाहती थी।
छः महीने हुए थे शादी को नई-नई शादी में मनु के भी अरमान थे, लेकिन मम्मीजी ने उन्हें अकेले नहीं छोड़ा था, हर जगह साथ लग जाती।
सही कहा तुमने, बहुओं का हक कल भी एहसान था, आज भी एहसान है और ना जाने, आने वाले कल में भी शायद एहसान ही होगा।
हालत ये हो गई थी कि सुबह बहू सोती मिलती और बेटे के आने पर बहू का आफिस जाने का चक्कर होता। मीनल जी का पारा तो सातवें आसमान पर था।
एक तरफ़ ऐसे शोज़ हैं जो औरतों का सशक्तिकरण दिखा रहे हैं, और दूसरी ओर ससुराल सिमर का जैसे शोज़ जो हमें रूढ़ियों की चौखट पे खड़ा कर देते हैं।
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