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मम्मीजी जी ने ये कह फ़ोन रख दिया कि देखना कोई कमी ना रह जाये, लेकिन ये पूछना तो भूल ही गईं कि "तुम्हें आटे का हलवा तो बनाने आता है ना?"
"ये कौन सी नई रीत शुरू कर रही है बहु? तोहफ़े तो बहुओं के मायके से आते हैं, ना कि ससुराल से भेजे जाते हैं", बहू ऐसा कहती थीं मेरी सासु माँ...
वह सोचती है कि उस पर हुक्म चलाने वाली जेठानी अपनी बहुओं पर हुक्म क्यों नहीं चलायीं? क्यों नहीं उसे ससुराल के नियम कानून सिखाती हैं?
"नहीं प्रिया, ये घर मेरे बाबूजी का है। मेरा बचपन बीता है यहाँ। अपनी माँ को तो देखा नहीं लेकिन उनकी मौजूदगी का एहसास होता है इस घर में।"
रात में ही जेठानी जब कमरे में छोड़ने आई थी, तभी कह गई थी कि कल सुबह रसोई की रस्म है। सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाना।
परछन होते ही सासू मां को कहते सुना, "हाय! मेरा बेटा कितना थक गया, जा अब तेरा कोई काम नहीं तू आराम कर ले, नई बहू इधर ही रहेगी।"
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