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देवर जी, आप तो छुपे रुस्तम निकले…

मम्मीजी जी ने ये कह फ़ोन रख दिया कि देखना कोई कमी ना रह जाये, लेकिन ये पूछना तो भूल ही गईं कि "तुम्हें आटे का हलवा तो बनाने आता है ना?"

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लेकिन माँ, तोहफ़े तो मायके से आते हैं ससुराल से नहीं…

"ये कौन सी नई रीत शुरू कर रही है बहु? तोहफ़े तो बहुओं के मायके से आते हैं, ना कि ससुराल से भेजे जाते हैं", बहू ऐसा कहती थीं मेरी सासु माँ...

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जेठानी जी, आप बदल कैसे गयीं…

वह सोचती है कि उस पर हुक्म चलाने वाली जेठानी अपनी बहुओं पर हुक्म क्यों नहीं चलायीं? क्यों नहीं उसे ससुराल के नियम कानून सिखाती हैं?

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आखिर कब तक! फैसला तो आपको लेना ही होगा…

"नहीं प्रिया, ये घर मेरे बाबूजी का है। मेरा बचपन बीता है यहाँ। अपनी माँ को तो देखा नहीं लेकिन उनकी मौजूदगी का एहसास होता है इस घर में।"

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तुम आराम कर लो, बाकी काम मैं कर लूंगी…

रात में ही जेठानी जब कमरे में छोड़ने आई थी, तभी कह गई थी कि कल सुबह रसोई की रस्म है। सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाना।

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नहीं करनी है ऐसी मुंह दिखाई मुझे…

परछन होते ही सासू मां को कहते सुना, "हाय! मेरा बेटा कितना थक गया, जा अब तेरा कोई काम नहीं तू आराम कर ले, नई बहू इधर ही रहेगी।"

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