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शर्मा परिवार एक दूसरे को हौसला देते रवि के जाने के ग़म को सह ही रहे थे कि एक सुबह दोनों बेटे परिवार सहित आ पहुँचे।
ज़रूरी नहीं है कि जिसने आप को जन्म दिया है वही आपका भाग्य विधाता हो। जहां आप भाग्य से गई हैं वह भी आपका विधाता बन सकता है। कुछ ऐसा मेरे साथ भी हुआ...
चार दिन के लिए ही मायके गई थी वो, लेकिन उसके जाने के नाम से ही घर में परेशानी हो गयी थी। बात ये भी थी कि ससुराल में उसे आराम न मिलता था।
शादी के साल गिने जाते हैं, पैसे या जायदाद में हक़ देने से पहले। जहां बात पैसे की आती है, तो बहू पराये घर की हो जाती हैं। आख़िर क्यों?
अपनी बेटी विनीता से उन्होंने कहा, "तुम जब चाहो तब मायके आ सकती हो, लेकिन मेहमान बनकर नहीं घर की सदस्य बनकर यहां रह सकती हो।"
आज माँ की ये बनारसी साड़ी मेरे लिये सिर्फ एक साड़ी नहीं रह गई थी, आज ये साड़ी मेरी माँ का आशीर्वाद और मेरे मायके का मान बन चुकी थी।
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