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इतने में अनुपमा कमरे से बाहर आयी और उन दोनों के गले से लिपटकर बहुत जोर से रोने लगी, मानो जैसे बहुत दिनों बाद मन में समाया गुबार निकला हो।
आज उसे खाता देख सीता जी से रहा ना गया वो बोल पड़ी, "लीला, तुम तो आदमियों जैसा खाती हो! इतना खाना ठीक नहीं!"
“तुम्हारी माँ क्या कहेंगी? हम तो उनके साथ भी काम करवाते हैं। अब अपनी बेटी के साथ करवा रहे हैं, तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा?”
सब अच्छे से चल रहा था। मीतू और सुदीप को ज्योति के वहां होने से कोई परेशानि नहीं थी बल्कि वह दोनों उसके वहाँ होने से बहुत खुश थे।
एक बात बताओ जब यही सब कुछ तुम्हारे भाई की शादी के बाद तुम्हारी भाभी के आने के बाद हो रहा है तो तुम्हें बुरा क्यों लग रहा है?
ये तुम्हारा ही घर है, उस पर तुम्हारा पूरा हक है, पर क्या अगर इसी घर में रोज़ खाना है, तो रसोई में थोड़ा हाथ नहीं बँटाया जा सकता?
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