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मेरा दामाद हीरा है हीरा, पर बेटा जोरू का ग़ुलाम…

सुनैना जी को अपनी बहु रूबी थोड़ी कम पसंद है क्योंकि बेटे अमित ने सबकी मर्जी के खिलाफ जाकर रूबी से प्रेम विवाह किया था।

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बहू तो मेहमान की तरह आती है…

सुधा जी ने कहा, “बहू कहां जा रही हो तुम? सभी की बहुएँ यहां रुकी हुई है और तुम्हें घर जाने की लगी है। अब कल तो बारात ही है, यहीं रुक जाओ।"

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रिश्ते दिल से निभाए जाते हैं रस्मों से नहीं…

शादी के दिन एक रस्म होती है, इस रस्म में जेठ अपने भाई की बहू को चुनरी ओढ़ाते हैं और उसके बाद से वो दोनों एक दूसरे को छू नहीं सकते।

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भतीजा होने पर सोने के झुमके तो बनते हैं ना…

कई बार नेग के नाम पे बड़ी डिमांड कर दी जाती है बिना सामने वाले की परेशानी देखे। नेग तो ख़ुशी से लेने देने की चीज है ना की जबरदस्ती लेने की।

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मेरी दादी सास और उनके दो तल्ले के झुमके…

"परे हटो सभी, नई बहू का चेहरा पहले उसकी दादी सास देखेगी।" जैसे ही घूंघट उठाया दादी ने उनकी नजरें तो बस नंदनी के झुमको पे अटक गईं। 

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एक घूँघट ने किये क्या-क्या सितम…

सासुमाँ की आवाज सुनाई दी तो नीली दरवाजा खोल सासुमाँ के गले लग रो दी। सख्त सासुमां भी थोड़ा घबरा गई उसे रोता देख।

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