कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
टॉक्सिक लोग होते कौन हैं? क्या ये हमारे बीच रहते हैं? क्या है इनकी पहचान? क्या इनके साथ रहना ठीक है? और कहीं हम भी इनमें से एक तो नहीं?
यदि उसे ससुराल की आवश्यकता है तो पति और सास को भी तो उसकी आवश्यकता है। उसके बिना भला घर का काम कैसे चलेगा?
जब मेरा मन करता है, सजती हूँ, संवरती हूँ, सिंदूर भी लगाती हूँ, पर दकियानूसी बातों पर अब मैं एतराज जताती हूँ, क्यूंकि अब मैं अपनी मर्ज़ी से जीती हूँ!
ओह्ह! उस पार्लर वाली ने कहा था पूर्णिमा की चाँद की तरह चमकेगा चेहरा, लेकिन इतने पैसे फुंक कर भी मुझे तो कहीं चाँद नज़र नहीं आ रहा।
डॉ फाल्गुनी वसावड़ा कहती हैं कि हमारे पास सिर्फ एक ज़िंदगी है तो आखिर कब तक हम सोसाइटी के अनुसार खुद को बदलने में लगे रहेंगे?
बेबाक ख्यालों और औरतों की आवाज़ बनी नंदिनी बस अपने घर पर ही मात खाती है क्यूँकि माँ आज भी पुराने रिवाज़ों से बाहर निकल ही नहीं पा रहीं।
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!
Please enter your email address