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मैंने तो अपनी पत्नी से दहेज़ भी नहीं लिया लेकिन वो तो ना सिन्दूर लगाना चाहती है, न मंदिर जाना चाहती है, बताइये अब मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ?
शन्नो और अनस की शादी हो गयी, एक ही कपड़ों के जोड़े में बिना मेहँदी और चूड़ियों के शन्नो ब्याह दी गयी और अब उसके सारे सपने चूर-चूर हो चुके थे।
हर गलती का हमेशा जिम्मेदार मुझे ही ठहराया जाता है, दूसरों के लिए छोटा, पर मेरे लिए मेरा आत्मसम्मान, शायद तब सबसे बड़ा हो जाता है।
अब रीना को सब बातें समझ में आने लगीं। उसे अब समझ आया कि क्यूँ उसकी माँ हर वक़्त उससे खींची-खींची और नाराज़ रहती थीं।
वाह बेटा वाह! बड़ी जल्दी बीवी का चेहरा पढ़ना सीख गया? जा अब जा कर मना उसे, खाना बना खिला, रसोई में रखे बर्तन धो...जोरू का गुलाम!
क्यूँ हम अपनी बेटियों को कहते हैं कि शादी के बाद तुम ससुराल को ही अपना घर मानना? क्यूँ हम उन्हें यूँ पराया कर देते हैं?
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