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पहले तो आप प्रेमिका को विजेता की ट्रॉफ़ी के तरह सजा-धजा कर घूमते हो। फिर वही प्रेमिका अलग-अलग रूप में इस रिश्ते का बोझ उठाती है...
दोनों की शादी जब हुई, माता-पिता और रिश्तेदार बुद्धिजीवी होते ही हैं, वो तो घोषणा कर बैठे कि ये रिश्ता नहीं चलना, छ: महीने भी।
ये तो बता कोई पसंद किया या तेरे लिए किसी बुड्ढे को देखूं? क्योंकि जवान तो तू रही नहीं। तीस की हो चली, पता नहीं कब शादी करेगी।
पति को भी समझाती थी पर शक्की मन नीरा पर विश्वास नहीं कर पाता था और फिर यही शारीरिक हिंसा और शक उसके मानसिक अवसाद का कारण बन गई।
सविता जी का तो अब पारा सातवें आसमान पर था। उन्होंने सुधा से बदला लेने की सोची और जल्द ही उन्होंने इस पर काम भी शुरू कर दिया।
चुपचाप पथरायी आंखों से आईने की तरफ निहारती खुशी ने सिर्फ इतना कहा, "पापा मैं आप सब के लिए हमेशा परायी से ही तो थी।"
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