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"मैं समझ गई हूं ससुराल में जाकर मुझे ऐसा कोई काम नहीं करना जिससे आप लोगों की नाक कट जाए। अपनी हर इच्छा और आदत तो को मार देना है..."
एक बार प्रेम-विवाह और फिर तलाक के बाद हमारी छिछालेदरी करवा के उसका मन नहीं भरा जो अब फिर एक नया राग लेकर बैठ गई है।
माँ बहुत कोशिश करतीं थीं कि आंसू ना बहे, खासकर बच्चों के सामने मगर जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता था तो आंसू अपने आप ही निकल आते...
रुद्राक्ष की माँ ने मावे से बना सेब हाथ में उठाते हुए कहा, "माँग तो हैं बहनजी। अगर आप हमारी माँग पूरी कर सकें तो ही यह विवाह होगा, नहीं तो आप ना समझो।"
"अरे! शादी के बाद ससुराल वालों को नौकरी करानी होगी तो वो लोग तुझे आगे पढ़ाएंगे। वरना उनकी मर्जी। शादी के बाद अपने घर जाकर अपनी मर्जी चलाते रहना।"
सिर्फ़ मुस्कान में ही नहीं, आंसुओं में भी चाहिए, सिर्फ़ मौज मस्ती में ही नहीं, ज़िम्मेदारियों में भी चाहिए, घोंसला साँझा है तो जिम्मेदारियाँ भी सांझी होनी चाहिए...
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