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पूजा को कुछ समझ नहीं आया। उसने ऐसे ही पर्स वापस कर दिया, बहुत ही शातिर अंदाज़ में सासू माँ ने व्यवहार के आये हुए रूपये पूजा से वापस ले लिये थे।
"अरे करना ही क्या है दाल रोटी बनाने में? एक मुट्ठी दाल कुकर में डालो और सीटी लगवा दो और दो रोटियां बना देना। आखिर, कितना ही समय लगेगा?"
तुम्हारी पहली बीवी जो भी है, जैसी भी है, तुम्हें क्यों बर्दाश्त कर रही है? तुमने उसके साथ भी नाइंसाफी की है और मुझे भी तुमने धोखा दिया।
"क्यों ना निकालूं बाल की खाल? जिंदगी क्या बार बार मिलती है। ब्याह के बाद की स्वतंत्रता और आनंद तो मिला नहीं, बंधन और जिम्मेदारियां भर भर के मिलती रहीं।"
"आज बोल दिया, फिर मत बोलना! मेरा बेटा क्यों रहेगा पागल? मर्द लोगों को थोड़ा गुस्सा आ जाता है। चीखने-चिलाने से कोई मर्द पागल नहीं बन जाता।"
दूसरे दिन बारह बजने को आए पर बहू का कोई अता-पता नहीं! आज तो रसोई की रस्म थी! सुप्रिया जी लोगों के बीच छिपते-छुपाते बहू के कमरे में गईं।
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