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शादी के बाद महिलाओं का नाम क्यों बदला जाता है?

कहीं न कहीं मन में एक बात खटकी कि शादी के बाद महिलाओं का नाम क्यों बदलना  पड़ता है? एक पहचान जो 25–30 साल में बनती है एकदम से शादी होते ही ख़तम क्यों?

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घर के काम मैं करूँ या तुम, क्या फ़र्क़ पड़ता है?

सीमा को अपने पति पर गर्व होता। उसने सपने में न सोचा कि उसका पति उसका साथ देगा। क्या करती, बचपन से उसने देखा कि ज़रूरत सिर्फ पति की होती है।

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ये मेरी ननद का मायका है और ये यहीं रहेगी…

प्रिया माँ को देखती रही, "माँ, मैं कमा कर बच्चे पाल लूँगी, बस आप इस छत के नीचे थोड़ी जगह दे दो।" पर माँ बेटी को दुनियादारी समझाती रही। 

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मैं ज़िन्दगी जीना चाहती हूं काटना नहीं…

"अल्पना, शादी तुम लड़के से करोगी या उसकी मांँ से? तुम लोगों ने छोटे लड़के को देखा? उससे बात करी? उससे पूछा कि वो तैयार है या नहीं?"

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आज सोचती हूँ ससुराल नहीं तो न सही, नाम तो मिला…

बहुत बुरा लगता मुझे कि मुझे ससुराल और ससुराल के रिश्ते होते हुए भी कुछ नहीं मिला। और मेरे ही कारण मेरे पति भी परिवार से अलग हो गए...

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सात फेरों का छठा वचन याद है ना आपको…

"कोई नहीं... आप निकलिए वरना लेट हो जाएंगे आफिस के लिए", श्वेता असहज होती हुई बोली क्योंकि पड़ोसी भी बाहर निकल आए थे।

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