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आज़ादी शब्द जब भी स्त्री के सामने आता है तो वह जाग उठती है, आज भी वह आज़ाद होकर आज़ाद क्यों नहीं है? कहाँ हैं महिलाओं के सामाजिक अधिकार और उनकी आज़ादी?
आज तो हमारे संविधान में कई तरह की आज़ादी और लोगों के अधिकारों का ज़िक्र है मगर मैं पूछना चाहती हूँ, क्या उन अधिकारों को लोग आसानी से पा लेते हैं?
आइए बात करें नारी-स्वतंत्रता की। क्या ये कहना उचित होगा कि आज़ादी तो मिली पर देश की अधिकाँश महिलाओं के लिए 'सम्पूर्ण आज़ादी' अभी भी एक अप्राप्य लक्ष्य है?
आज भी हमारी आज़ादी के लिए सीमा पर सैकड़ों फौजी शहीद हो रहे हैं और हमारे बच्चों को इस आज़ादी का मतलब और कीमत नहीं पता।
भारत छोड़ो आंदोलन में समाज के हर छोर से ऐसी ही औरतें शामिल हुईं जिन्होंने अपने साहस, नेतृत्व और त्याग से भारत में नारीवाद का एक नया इतिहास लिखा।
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