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अपनी न्याय पूर्ण तथा सही पत्रकारिकता के जरिये फाये डिसूज़ा ना ही सिर्फ लोगों में जागरूकता फैला रहीं हैं बल्कि आशा की एक नई किरण भी जगा रहीं हैं।
मैंने आँखों में काजल लगाया, तो आपने मुझे नचनिया बना दिया? मैंने अपने पसंद के कपड़े पहने तो आपने मुझे हिजड़ा और छक्का बना दिया?
अनुराग कश्यप की नई फ़िल्म चोक्ड - पैसा बोलता है, एक साधारण से लगने वाले असाधारण राजनैतिक टॉपिक, नोटबंदी, पर कसी गई एक सरल और खूबसूरत फ़िल्म है।
क्या तुमने सोचा था कभी, इक ऐसा साल भी आएगा, पिता का आँगन, माँ का खाना, मैके की बस रहेगी आस,ना भाभी की ठिठोली होगी, ना भैया के सँग उल्लास।
हे मानव! अब क्यूँ करता है क्रन्दन? पर्यावरण दूषित करने का तू ही तो है कारण, मोल तेरा कुछ नहीं,इनके बिना तू मान ले...तू मान ले!
बासु चटर्जी ने अपनी फिल्मों में ह्यूमर के साथ-साथ कई सामाजिक मुद्दों को भी दर्शाया, उनकी कई फिल्मों में महिलाओं के किरदारों को भी बखूबी लिखा गया था।
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