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एक मेरा सिंदूर और बिछिया ही पहचान बनायी समाज ने तुम्हारी पहचान थी, फिर इस सफ़ेद पोशाक में कौन पहचानेगा मुझे कि “मैं तुम्हारी हूँ?”
जिद्दी रमा ने किसी की कभी सुनी थी? चट रत्ना का हाथ पकड़ सुन्दर बेल-बूटे सजा दिये। मेहंदी का रंग भी ऐसा कि पल भर में चटक लाल हो आया।
पर शादी में जितनी महिलाएं आयी थीं, दुल्हन से ज्यादा शिवानी पर सबकी नजरें थी। कुछ तो "अनर्थ" कहकर चल दीं उठकर शादी से।
विश्वगुरु कहे जाने वाले भारत में आज भी विधवा औरत को अछूत और अपशकुनी मानकर उन्हें समाज से अलग कर दिया जाता है। ऐसा क्यों है?
अब विधवा पेंशन योजना के माध्यम से विधवा महिलाओं को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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