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मैंने बालों को समेट कर रखना शुरू कर दिया। खुली चोटी भी गुथ गई। अकेले में खुद को देख कर इतराती पर दुनिया के सामने हिम्मत नहीं होती।
जैसे प्रकृत्ति में बसंत का मौसम है, वैसे ही हर इंसान के जीवन में भी बसंत होता है पर वह प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता है।
दोनों की शादी जब हुई, माता-पिता और रिश्तेदार बुद्धिजीवी होते ही हैं, वो तो घोषणा कर बैठे कि ये रिश्ता नहीं चलना, छ: महीने भी।
ये तो बता कोई पसंद किया या तेरे लिए किसी बुड्ढे को देखूं? क्योंकि जवान तो तू रही नहीं। तीस की हो चली, पता नहीं कब शादी करेगी।
मालती बहुत ध्यान रखती अपने ससुरजी का, लेकिन उनका अकेलापन वो कैसे बांटती? हमेशा ही एक झिझक सी रहती थी दोनों ओर...
दो दिन से थोड़ी हरारत भी थी रूचि को। जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो रसोई में गई चुपके एक कटोरी में थोड़े दाल चावल लिये।
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