कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
पर उसकी धूर्तता का कच्चा चिट्ठा उस सुबह खुला, जब हमारे पड़ोस में रहने वाली दीदी की सबसे अच्छी सहेली और ये, दोनों एक साथ गायब मिले।
इंटरव्यू और तुम? तुम्हारे बस में है, इंटरव्यू देना? तुम क्या जानो नौकरी के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। यह सब तुम्हारे बस का नहीं है।
बेटा, एक औरत को औरत ही समझ सकती है। आदमी तो औरत को बहलाता है कि बस मैं ही हूं तुझे समझने वाला। औरत ही दूसरी औरत का असली सहारा है।
कुछ बच्चे अपने माता-पिता को एटीएम कार्ड समझते हैं पर कुछ माता-पिता भी ऐसे होते हैं जिनके लिये कमाऊँ पूत उनके लिए एटीएम कार्ड की तरह होते हैं। शेखर देर रात को ऑफिस से थका हारा घर आता है पत्नी शिखा दरवाजा खोलती है और कहती है, “तुम कपड़े बदल लो मैं खाना लगाती हूँ।” […]
मैं आपके वक़्त के लिए तरसती रही। जानती थी, आप हमारे परिवार के लिए ही मेहनत कर रहे हैं, फिर भी बहुत से ऐसे पल आये जब आपको मिस किया...
हालांकि इन सब बातों का हम पर फ़र्क तो पड़ना नहीं चाहिए, पर पड़ता है, जबरदस्त पड़ता है। आदत जो पड़ गई है खुद की छवि को दूसरों के आईने से देखने की।
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!
Please enter your email address