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फेमिनिज्म कभी भी महिलाओं को समाज से अलग-थलग रखकर देखने और हर क्षेत्र में पुरुषों के खिलाफ उन्हें प्रोत्साहित करने का दर्शन नहीं रहा।
मेरी सैलरी से पैसा लेना कभी किसी को बुरा नहीं लगा, पर मेरी मदद करना...! और उसी का नतीजा था कि आज सब लोग एकत्रित हुए थे।
जैसे ही मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा तो उसका चेहरा देख मैने चौंकते हुए पूछा, "विशाखा तुम्हारे चेहरे पर ये निशान?" सुन कर विशाखा रो पड़ी।
ना जाने उस दिन मुझमें कहां से वो हिम्मत आई, पास पड़ी एक ईट को उठाकर मैंने जोर से तुम्हें दे मारा। पहली बार तुम्हें कमजोर, घबराया हुआ और डरा हुआ देखा था मैंने...
कुर्रतुल ऐन हैदर साठ के दशक में जब हिंदुस्तान पहुंचीं तो पहला बेशमीमती अफसाना जो उन्होंने लिखा, वह था अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो...
दीदी, सुरेश क्या बोलेंगे? मैं उनसे तो पैसे लेती नहीं हूं। मैं अपनी कमाई के कुछ पैसे अपनी मां को भेजती हूं। वह चाहकर भी मुझे मना नहीं कर पाते।
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