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देखो जी, हम से महिला अधिकारों पर चाहे जितनी भी बात करा लो, लेकिन घर जा के खाना बीवी को ही पकाना है, घर के सारे काम भी उसी से करवाने हैं...
ज़रूरी नहीं है कि जिसने आप को जन्म दिया है वही आपका भाग्य विधाता हो। जहां आप भाग्य से गई हैं वह भी आपका विधाता बन सकता है। कुछ ऐसा मेरे साथ भी हुआ...
शादी हो जाये तब पत्नी का ख्याल रखने के नाम पर उसके दिमाग को घर की चार दीवारी में कैद करना और उसकी गलती पर उसे एक "जड़ देना"...
“लड़की को नौकरी के लिए बड़े शहर मत भेजना वरना बिगड़ जाएगी। वहाँ की औरतें बोल्ड और प्रोग्रेसिव होती हैं, उनका चरित्र ठीक नहीं होता।”
मेरे लिए आज़ादी का मतलब बहुत सरल है। आप बस इतना करें कि बेटी के जन्म के साथ ही उसे सर्वश्रेष्ठ स्त्री बनाने की होड़ से उसे आज़ादी दें।
हम में से कई लोग मानते हैं कि नारीवाद से जुड़े लोग यानि फेमिनिस्ट, दुनिया को नियंत्रित करना चाहते हैं और पुरुषों को नीचा दिखाना चाहते हैं।
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