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समय बदल गया पर लोगों की सोच आज भी नहीं बदली। आज भी स्त्री भोग की वस्तु है, उसे उनके शरीर से ही तौला जाता है।
"अपने आप को फ़िट रखने के लिए शादीशुदा या कुँवारी होने से क्या मतलब है? मुझे किसी को दिखाने के लिए नहीं स्वयं को स्वस्थ रखने फ़िट रहना है।"
क्यों उस बेटी को बार बार यह महसूस कराया जाता है कि वह कुछ भी कर ले, उसकी तुलना हमेशा एक बेटे के साथ करी जाएगी? वो बेटा नहीं, बेटी है आपकी...
मेरा घर दिखते ही, मेरे पैर में जैसे पंख लग गए हो। मैं भाग कर अपने घर के अंदर गई, मुड़ के देखा की वो कौन थी? वो दूर खड़ी मुस्कुरा रही थी।
रिश्तेदारों की भीड़ धीरे-धीरे कम हो गई सब अपने घरों को प्रस्थान जो कर गए थे। अब होने लगी सुनैना की वास्तविकता से पहचान।
और वो सोचने लगी कि क्या इस रिश्ते में पत्नी की सहमति भी कुछ मायने रखती है या ये रिश्ता सिर्फ पति की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया?
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