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परवरिश
आधुनिक भारतीय माँ के दृष्टिकोण से बच्चों के पालन-पोषण के बारे में
माँ, काश तुम मुझे समझ पातीं…

धीरे-धीरे बिंदु ने अकेले बड़बड़ाना सीख लिया। जितना गुस्सा होता था वह अकेले कमरे में बोलकर निकालती थी और ऐसे ही वो बड़ी हो गयी...

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और उसने अपनी मनपसंद पीली साड़ी पहन ली…

"चिल्लाना बंद कीजिये! संस्कार देने की ज़िम्मेदारी माता पिता दोनों की होती है, अकेली माँ की नहीं। आपने कभी माँ को बराबरी का दर्जा नहीं दिया।"

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बेटा, तुम्हें ये रिश्ता पसंद है ना…

उन्होंने अपनी बेटी से पूछा की रिश्ते से कोई आपत्ति हो तो बता दे।बेटी ने जवाब दिया “हमें क्यूँ होगी आपत्ति, आप हमारा बुरा तो सोचेंगे नहीं।”

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माँजी, काश आप मेरे बेटे को इतना न बिगाड़तीं…

“जाने दो ना बहु, पढ़ लेगा बाद में और अगर तीन घंटे दोस्तों के साथ घूम लेगा तो क्या बिगड़ जायेगा? जब देखो मेरे पोते के पीछे पड़ी रहती हो?” 

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काश मैं अपने बच्चों को ज़िम्मेदार बना पाती…

अब हर आती जाती सांस के साथ विमला जी खुद के फैसले पे पछतावा महसूस करती। अपने पति की चेतावनी ना मानने का अंजाम ही था यह।

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जब एक माँ ठान लेती है, तो उसे कोई नहीं हरा पाता…

परवरिश बहुत सावधानी से करनी होती है। यहीं से संस्कार मिलते हैं और यही आपका व्यक्तित्व भी तय करती हैं। पर सबकी परवरिश में अंतर होता है।

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