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कथा और कविता
बेटा, वक्त से पहले बोलना नहीं चाहती हूँ मैं…

सुरभि ने कहा भी था, "मां तुम मेरे बारे में किसी से चर्चा क्यों नहीं करती हो?" मां ने कहा था, "बेटा मैं क्यों बताऊंगी? वह लोग खुद जान जाएंगे।" वक्त से पहले बोलना नहीं चाहती थी वो।

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मैं स्वयं लिखूंगी भाग्य मेरा…

समयचक्र है बदल गया, जो हुआ पुराना बीत गया। अब मुझसे टकराने का साहस न कर पाओगे तुम। मैं स्वयं लिखूंगी भाग्य मेरा।

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स्मार्ट फोन वाली मेरी माई…

मेरी मम्मी को अब तो यूट्यूब चलाना आ गया था। घर की जितनी पुरानी चीजें थी सबसे घर को सजाने बैठ गईं। घर तो नहीं सजा चीजें जरूर बर्बाद हो गई।

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मांजी, पोते-पोतियों के बीच फर्क क्यों करती हैं आप?

लड़कियों का जन्मदिन घर में ही परिवार के लोगों के साथ मना दिया जाता था लेकिन लड़कों का जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाया जाता था।

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मुझे अपने पिया का साथ मिल गया था…

ये बात समझने में मैंने बहुत देर कर दी कि पति होने के नाते मेरे कुछ कर्तव्य तुम्हारे प्रति भी हैं। लेकिन अब तुम्हारे साथ कोई भेदभाव नहीं होगा।

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आजकल लॉन्ग डिस्टेंस वाली सोहबत जी रही हूँ…

बातों की लड़ी बस टूटती, लचकती, ठहरती यूं ही चलती रहतीं है, रूठना-मनाना, गुड-मार्निंग, गुड-नाईट लॉग डिस्टेंस को जोड़ती यही तो ठोस कड़ी हैं।

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