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कथा और कविता
अपराधी हूँ मैं खुद की रख के ये मौन…

अपराधी हूँ खुद की रख के मौन, सहारे हैं ये अपने यही सोच रहती मौन, मगर अब ये ख़ामोशी चीखती है, सवाल कर के पूछे आखिर मैं हूँ कौन?...

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मुझे अपनी तीसरी बेटी होने का दुःख है…

साक्षी के मन मे तीसरी बेटी को लेकर इतनी कड़वाहट है, ये किसी को समझ नहीं आ रहा था। कोई कहता कि ससुराल वाले या पति किसी ने कुछ कहा होगा।

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मेरी बेटी बिलकुल अपनी माँ जैसी बनेगी…

पिता और माँ की दोहरी भूमिका थी सुनील की। अब तो स्कूल के व्हाट्सप्प ग्रुप में सारी माँओं के साथ वो भी शामिल था। शुरू में सब थोड़ा अजीब था...

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मुझे पता है वो बच्चा आपका ही है…

इस तरह अजय के कारण क्रिश की घर वापसी हुई। मीनल और रवि महीनों तक सदमे में थे। धीरे-धीरे समय के साथ वह ठीक हुए।

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एक दोस्त मेरा भी है इस घर में…

हाँ एक ऐसा हमराज़ है इस घर में मेरा, जिससे कुछ भी छिपा नहीं है, उसके सामने जाते हीवो मेरा चेहरा पढ़ लेता है, ऐसा हमराज़ है इस घर में मेरा!

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मैं खुद क्या हूँ, ये अच्छे से जानती हूँ…

जब माँ, बहन, बेटी और पत्नी का किरदार बखूबी निभा सकती हूँ, तो मैं खुद क्या हूँ? क्या अपना ही परिचय नहीं बता सकती हूँ?

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