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होती हैं ये सब किस्मत की बातें,मैं भी यही सोचा करती थी। है अगर यही मेरी क़िस्मत तो, मैं किस्मत से भी लड़ जाऊंगी।
बड़े बड़े इन महलों में बंद, बुलबुलें झटपटाती हैं, क्या किसी के लिए लड़ेंगी, आपबीति नहीं कह पाती हैं, आपबीति नहीं कह पाती हैं...
कभी किसी वक्त उस पन्ने को पलट के देखना ज़रूर, अपने बीते हुए कल को निहारना ज़रूर, फिर एक बार तुम मुस्कुराना ज़रूर...
नहीं थूक पाई, भीड़ भरी बस में उस आदमी पर, जिसके हाथ लगातार उसके आगे खड़ी औरत के जिस्म को छू रहे थे, तब बोलना चाहिए था, कुछ करना चाहिये था...
अपनी माँ को हमेशा अभाव में देखा था अवि ने इसलिए नौकरी मिलते ही इ.एम.आई ले कर घर में सुख सुविधा की चीज़ें जुटाने लगा।
बहुरानी, तो क्या मैं इसे तुम्हारा थोथा ज्ञान समझूं? कथनी और करनी में अन्तर? अभी पैदा हुयी है, पहले इसकी देखरेख अच्छे से करो!
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