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कथा और कविता
ये घर मेरे लिए है, मैं घर के लिए नहीं…

“यार औरतें अपना ध्यान नहीं रखतीं।” सच कहा, मैं रखूँगी अपना ध्यान, क्योंकि कोई और नहीं रखता, क्योंकि मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ, घर से नहीं।

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मुझे समझने में भूल हुई है तुमसे…

सम्मान चाहते हो तो, सम्मान देना भी सीखो, झुकाना चाहते हो तो, झुकना भी सीखो। जो बोया था वही काटोगे, ये सबक भी सीखो।

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जी हमारी लड़की तो बिलकुल गाय है गाय…

सुची तो पूरी गाय है। सीधी सादी आज्ञाकारी घर के कामों में माँ का हाथ बँटाती दिख जाती, दिखने में भी भोली सी और उसकी दो लंबी सी चोटी।

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मेरा सिंदूर या मेरी इज़्ज़त, क्या ज़्यादा ज़रूरी है?

राजी तो हुई बबीता बुआ पर सिंदूर दान के बाद उन्होंने सभी लोगों के सामने अपना सिंदूर धो डाला और अपना मंगलसूत्र उतार दिया। 

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क्या सच में परायी होती हैं बेटियाँ?

कभी माँ, कभी पत्नी, कभी बहन, कभी भाभी, हर रूप में खूबसूरती से ढल जाती हैं बेटियाँ।जाने फिर भी क्यूँ परायी कहलाती हैं बेटियाँ?

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मेरी बेटियाँ भी बेटों से कम नहीं हैं…

गीता ने आकर सबसे पहले सरपंच से मुलाकात करी। सरपंच गीता को देखकर शर्मिंदा हो गए। उन्होंने गीता से अपने शब्दों के लिए माफी मांगी।

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