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कथा और कविता
बस आखिरी बार मुझे एक मौका और दे दो…

संध्या को देखते ही सुधीर उसके पांव को पकड़ माफ़ी मांगने लगा, ”मुझे माफ़ कर दो संध्या बहुत बड़ी गलती हो गई। प्लीज़ घर चलो।”

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एक घूँघट ने किये क्या-क्या सितम…

सासुमाँ की आवाज सुनाई दी तो नीली दरवाजा खोल सासुमाँ के गले लग रो दी। सख्त सासुमां भी थोड़ा घबरा गई उसे रोता देख।

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वो बार-बार कहती है क्योंकि तुम सुनते नहीं…

ओफ्फो, बस भी करो माँ एक ही बात को कब तक दोहराओगी। पर किसी ने सोचा है कि वो बार-बार एक ही बात क्यों कहती है?

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और मैंने मासी माँ से सिर्फ माँ बनने का फैसला किया…

इतना लाचार तो पापा को तब भी नहीं देखा था जब मेरे रिश्ते के लिए ना होती थी। कितने बूढ़े कितने लाचार लग रहे थे पापा। 

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इस बार की ईद कुछ ऐसी हो…

इस ईद कुछ तो चमत्कार सा हो, ये बेबसी ये बैचेनी अब दूर तो हो, साँसों पर अब कोई उधार ना हो, इन साँसों में फिर से बहार सी हो...

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कुछ लोग अपने पैसे सिर्फ दुआ कमाने के लिए खर्च करते हैं…

मोनू उस वक्त भी मदद के लिए आया था, लेकिन उसकी आवाज़ को अनसुना करके दोनों कमरे में ही चुप्पी साधे बैठे रह गए थे।

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