कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
अपने हिस्से का खाना भी बच्चों को खिलाकर, मेरी भूख मर गयी कहती हो। बच्चों को खाते देख कितनी तुम खुश होती हो, माँ तुम कितना झूठ बोलती हो।
माँ, सबसे छोटा शब्द...माँ, सबसे छोटा शब्द लेकिन शब्दकोष में शायद शब्द ही कम पड़ जाएँ, पर माँ को बयाँ नहीं किया जा सकता।
साथी हूँ बराबर की मुझे कमजोर ना तुम समझो, इक जिंदा इंसान हूँ मुझे कोई चीज़ ना तुम समझो, मालिक बनने की कोशिश न करना।
किसी को फर्क़ नहीं पड़ता, कि मुझे भी कुछ अच्छा लग सकता है। कितनी बार, कितनी बार अपनी इच्छाओं को मारा मैंने।
“आज सुबह सुबह मनोहर और ये हाथों में क्या छिपाया रखा है तूने?” रत्ना के बार बार पूछने पे शरमाते हुए मनोहर ने हाथ आगे कर दिया।
अपनी आँखों के सपने तकिये पे सूखाकर, सबके लिए वो बनने की कोशिश करते हूँ जो मैं नहीं...और तुम्हें बस मेरा शरीर दिखता है, मेरा मन नहीं...
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!
Please enter your email address