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छः महीने हुए थे शादी को नई-नई शादी में मनु के भी अरमान थे, लेकिन मम्मीजी ने उन्हें अकेले नहीं छोड़ा था, हर जगह साथ लग जाती।
सही कहा तुमने, बहुओं का हक कल भी एहसान था, आज भी एहसान है और ना जाने, आने वाले कल में भी शायद एहसान ही होगा।
इस दौर में कहते हैं सब, हम लिखेंगे नई कहानियां, जन्म लूं मैं किसी भी सदी में, क्यों लगता है बिकती हैं बस मेरी जवानियां?
लेकिन इन सब के बीच एक बात जो दिनेश देखते रह जाते की राजीव की दोनो बेटियो में पूरा घर सम्भाल रखा था और साये की तरह राजीव के साथ लगी रहतीं।
विभा ने कई बार दबी जबान से कहने की कोशिश भी की थी कि अब तो आप लोग घर संभाल सकते हो, तो क्यों ना मैं एक-दो दिन के लिए...
हाथ जोड़ने वाली ने अब हाथ उठाना सीख लिया, चूड़ी वाले हाथों ने अब बंदूक़ चलाना सीख लिया, नारी अब कमजोर नहीं है, नारी अब लाचार नहीं है।
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