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कथा और कविता
हम अपने बेटे की शादी धूमधाम से करेंगे लेकिन अपने पैसों से…

मम्मी कह रही थी कि अनन्या उनकी इकलौती बेटी है तो वह कार भी तो देंगे ही अपनी बेटी को। इसी बात को लेकर मेरी और पापा की मम्मी से बहस हो गई।

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दीदी, आज से मेरी बेटी भी घी वाली रोटी खायेगी!

“अगर जिंदगी मुझे दोबारा मौका दे रही है तो मैं क्यों घर में बैठूँ। मेरी बच्ची को भी घी वाली रोटी खाने का हक है और उसके लिए ऐसी रोटी मैं कमाऊंगी।”

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आखिर मैं भी कब तक चुप रहती?

चलते-फिरते मुझे ससुर जी, कभी मेरे देवर, तो कभी मेरे पति याद दिला दिया करते थे कि मैं इस घर में उनकी पसंद नहीं हूँ।

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तुम्हारे जैसी दोस्त हो तो दुश्मन किसे चाहिए…

अमिता शैलजा से अपने दिल का सारा हाल बयां कर देती और बाद में शैलजा अमिता की सारी बातें चटकारे ले लेकर ऑफिस को बताती।

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अब मैंने भी अपनी मर्ज़ी से जीना सीख लिया है!

जब मेरा मन करता है, सजती हूँ, संवरती हूँ, सिंदूर भी लगाती हूँ, पर दकियानूसी बातों पर अब मैं एतराज जताती हूँ, क्यूंकि अब मैं अपनी मर्ज़ी से जीती हूँ!

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सासु माँ, आपका प्यार एक दिन मुझे ज़रूर मिलेगा!

शादी के बाद शैली जब भी पति संग ससुराल जाती तो सास उसके रंग-रूप का मखौल भी उड़ाती और अब तो छोटी बहू भी आ गई थी।

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