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तुम घर की बहू हो, बेटी नहीं। तुम्हें जिम्मेदारियों का कोई एहसास है कि नहीं? रात के खाने का टाइम हो चुका है और तुम्हारा अता पता ही नहीं।
घुट-घुट कर मरना छोड़कर, चुप्पी को तोड़कर अपने हौसले बुलंद कर, व्यथा मैं अपनी सबको सुनाती, नारी शक्ति का नया अध्याय बनाती...
बुआ सास ने कहा, "जब सास ही रस्म रिवाज नहीं निभाएगी, तो बहु क्या खाक रीति-रिवाजों को मानेगी? वो तो आज के जमाने की लड़की ठहरी।"
घर के किसी कोने में आज भी उनकी साइकल सजती है, त्योहारों में अब पहले सी शरारत कहाँ होती है, कहीं रूमाल तो कहीं हेयर क्लिप छोड़ जाती हैं बेटियाँ!
वह परफ्यूम की इतनी शौकीन रही है कि बहुत कीमती तथा आसानी से ना मिलने वाली सुगंध खरीद खरीद कर जमा करती रही।
आजकल की लड़कियों के बड़े नखरे हैं, यह नहीं सोचती कि अगर बड़े कुछ कह रहे हैं तो भले के लिए ही कह रहे हैं। इन्हें तो बस अपनी ज़िद प्यारी है।
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