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कथा और कविता
सूचियों के ढेर में दफन कविताएँ

न जाने कितनी ही कविताएँ गृहणियों की ऐसी ही सूचियों के ढेर में दफन मसालों और दालों के तोल बताती अपने अस्तित्व से अंजान बेमोल पड़ी सिसक रही हैं।

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सदियों बाद आज फिर ज़िंदा हो रही हूँ मैं…

एक सदियों पहले ही मर चुकी थी, एक अचानक से नई उगी थी। एक ने पहन लिया था सन्नाटा, एक आंदोलन चला रही थी...

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अरे भाई औरतें हाउस वाइफ ही ठीक लगती हैं, बॉस नहीं…

इंटरव्यू हुआ और मैं सेलेक्ट हो गई। अगले दिन सुबह सुबह मुझे तैयार हुआ देख रमन चौंके, "कहाँ की तैयारी इतनी सुबह कोई किट्टी पार्टी है क्या?"

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मुझे भी अपने पति को देखना है…

"अरे! मैं भी तो देखूं आखिर किस चूहे से शादी हो रही इस शेरनी की", मीरा लड़कपन में बोली। मीरा को कौन सा उसे मां की दी सलाह याद आ रही थी।

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तुम्हारे गुस्से का कारण मैं नहीं तुम खुद हो…

"अरे यार हो जाता है गुस्से में। लेकिन मैं तुमसे प्यार भी तो करता हूं तुम तो जानती हो कि मैं गुस्से पर कंट्रोल नहीं कर पाता।"

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मैं आपके बेटे की विधवा होने से इंकार करती हूँ…

"अरे, ये क्या बोल रही हो बहू? अमर ने तो तुम को हमेशा प्यार किया, तुम माँ नहीं बन सकती थी तो बच्चा गोद लेकर तुम्हें माँ बनने का सुख दिया।"

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