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“मैंने खुद से लड़ना है सीखा, मैं क्यों बनूँ हमेशा सीता?” आज की नारी कमज़ोर और लचार नहीं है, उससे अपने लिए लड़ना आता है।
उसकी उदासी बिजॉय तुरंत भांप गया और बोला, "कुछ वचन हम भी एक-दूसरे से लेना चाहते हैं। बोलो ना शर्मिष्ठा, मुझसे क्या वचन लोगी तुम?"
"मेरे विवाह में कन्यादान की रस्म में पिता नहीं बैठे, बाद में उन्होंने कहा कि बेटी कोई सामान या दान की वस्तु नहीं", कहती हैं अंजली शर्मा।
दुल्हनिया हो हमारी जग से न्यारी, चाहिए लड़की ऐसे गुणों वाली, लड़के का कोई बखान नहीं, क्योंकि वह तो लड़की देखने आया है।
ज़ुबैदा को ऐसा लगता था कि उसके सपनों को पंख मिल जाएंगे, पर ऐसा हो न सका। पंख तो उस को मिल गए पर उड़ने की आज़ादी नहीं मिल पायी।
दोनों पिता-पुत्र अपने तर्क देते और बीच में पिसती मैं, किसी तरफ जाऊं? पति या पुत्र? दोनों ही प्रिय थे लेकिन बेटे का चेहरा देखती तो लगता...
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