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कथा और कविता
बेटा बुढ़ापा तो एक दिन तुमको भी आना है…

बहु तू बिलकुल चिंता मत करना, खिड़की से हवा भी बहुत अच्छी आती है, अभी रवि ने बताया क्यूंकि एक दिन बुढ़ापा तो सबको आना है...

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माँ न बन पाने पर क्या मेरे साथ ऐसा सलूक ठीक था?

दो हफ्ते बाद मुरझायी माया घर आई पर अब ये घर वो नहीं था। अब सब बदल गए थे। कल जो पलकों पे थी आज आँखों को चुभ रही थी।

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जब वो कुछ नहीं करती तब वो कुछ ऐसा करती है…

जब वो कुछ नहीं करती तब वो अपनी माँ को फोन करती है और पूछती है कि वे सारी उमर घर पर खाली बैठी आज तक बोर क्यों नहीं हुई!

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मुझे सिर्फ सजावट का समान नहीं बनाना…

सोच को बदलने का समय आ गया है, कमजोर नहीं सशक्त बनने का समय आ गया है, सिर्फ परिवार नहीं उसका स्वाभिमान भी सब पर भारी है।

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तुम ये सलवार-सूट पहन कर क्यों आई हो?

डिअर तन्वी मैं तुमको समझाने की कोशिश कर रहा हूं और तुम समझ नहीं रहीं, इस मीटिंग में तुम्हारा जाना ज़रूरी है और सेक्सी-मॉडर्न लुक में।

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अपनी जगह तलाशती है हर स्त्री…

स्त्री खुश है या नहीं, कोई मायने नहीं रखता। आज भी स्त्री, गृहस्वामिनी की खुशी या दुख से, किसी को, कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

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