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यादें अच्छी हों या बुरी, हमेशा दिल में रहती हैं। ये साल भी इक्कीसवीं सदी की मानव सभ्यता में एक नए और न भूलने वाले सबक के लिए याद रखे जाएँगे।
कितनी सरलता से एक स्त्री एक बीज को फूल बनाती है और पूरी बगिया को अपने प्रेम से सींचती है फिर क्यों वह अपने अस्तित्व को ही खोज नहीं पाती?
नंदिनी तो केवल अपनी इच्छा जाहिर कर रही थी। लता भी अब सोच रही थी कि क्या उसका फैसला सह था, क्या वास्तव में उसकी बेटी राज कर रही है?
प्रतिभाशाली स्त्रियां समाज को नहीं भाती इसलिए कि वो पुरूषों के कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हैं बल्कि इसलिए क्योंकि वो पुरुष की हाँ में हाँ नहीं मिलातीं।
राधा सोच में थी कि आखिर ऐसी क्या बात हो गयी? उसकी मां उसे यूँ अचानक अकेला छोड़कर दुनिया से चली गयी। उसका मन हो रहा था कि...
एक मेरा सिंदूर और बिछिया ही पहचान बनायी समाज ने तुम्हारी पहचान थी, फिर इस सफ़ेद पोशाक में कौन पहचानेगा मुझे कि “मैं तुम्हारी हूँ?”
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