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कथा और कविता
आपको इतने सालों बाद भी याद रहा…

फॉर्म पढ़ते ही आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई। उषा जी ने मुस्कुरा कर अपने पति को देखा, "आपको याद रहा इतने सालों बाद भी?"

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जब मैं थक जाया करती हूँ तो खुद से कहती हूँ…

अगर लगे कि सब बराबर है, तो फिर तो कोई गम ही नहीं, पर गर लगे कि मामला गड़बड़ है तो रास्ता बदलने में भी देर नहीं लगाती हूँ।

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पसंद है उसे ख्वाबों की ताबीर को सच कर दिखाना…

खुद ही सीखा है उसने तूफानों में खुद को संवारना, पर फिर वो वो नहीं रह जाती इन सब बातों में, भूल जाती है ठहाके लगाकर हंसना खिलखिलाना।

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बेटी ये लोग नहीं, तुम्हारा भाग्य खराब है…

पैसा होने की वजह से समाज में रूतबा भी ससुराल वालों का बहुत था, लेकिन दरवाजे पर लगे महंगे पर्दे के पीछे की सच्चाई बिलकुल ही उलट थी।

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ये तुम्हारी इस गृहणी बीवी की बचत है जनाब…

"वाह, क्या बात है मेरे जन्मदिन पर मेरे पैसों से खरीदकर मुझे ही उपहार दिया जाएगा। और एहसान भी कि बचत पर मेरा अधिकार है", रमन ने कहा। 

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अब मुझे अपने लिये जीना है ज़माने के लिए नहीं…

आपने मेरे आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान को झकझोर कर रख दिया कि आखिर क्यों सह रही हूं मैं? और फिर रश्मि की बातों ने मुझे मजबूत बना दिया।

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