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कथा और कविता
समाज की नज़रों में वो एक तलाकशुदा से ज्यादा और कुछ नहीं…

शादी में सुभ्रदा कहती हैं, "मैं अच्छे से जानती हूं इन तलाकशुदा औरतों को, खुद का घर बसता नहीं और दुसरों का घर तोड़ने में लगी रहती हैं।"

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तुम्हारी पत्नी सिर्फ एक जिस्म नहीं है…

शादी के बाद प्रियंका को जब पता चला तो वह स्वयं को ठगा हुआ महसूस करने लगी क्योंकि रवि से उसने यह उम्मीद कभी नहीं लगाई थी...

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सासु माँ आपकी बहु भी आपके परिवार का हिस्सा है…

जब भी कोई ख़ास सलाह के लिये बेटी और दामाद को बुलाया जाता तो पूरा परिवार कमरे में बंद हो जाता और अंदर ही अपनी खिचड़ी पकाता। लेकिन घर की बहू?

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खरीदार मैं हूँ तुम्हारी, तुम नहीं…

जीवनसाथी तलाशते हो या बुढ़ापे में सेवा करने के लिए कोई आया, मुझे तो तुम्हारा यह समाज आज तक कुछ समझ में नहीं आया...

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क्या तेरी माँ ने तुझे बस यही सब सिखाया है?

बेटी को कुछ घर के काम भी सिखाए हैं या सिर्फ मारना पीटना ही सिखा रही हो। कल को सासू माँ कहेगी कि माँ ने क्या सिखाया है?

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बेटियाँ देंगी अपनी माँ को अंतिम विदाई…

जब मेरी माँ अकेली औरत होकर हम बहनों को बेटों की तरह पाल सकती है, तो हम बहनें क्यूँ नहीं उनको अंतिम विदाई दे सकते हैं?

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