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कथा और कविता
कौन कहता है फर्क नहीं पड़ता?

कौन कहता है शर्म नहीं आती पति के आगे हाथ फैलाने में? पूछो उस स्त्री से जिसने दो साड़ी में सालों साल बिताए हैं, नहीं हक़ उसका क्यूंकि...

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बेशर्म दुल्हन होना मंजूर है लेकिन अपने सम्मान से समझौता करना नहीं…

तेरा दर्द मैं समझ सकती हूं लेकिन तुझे ही गाली देंगे। तेरे ही चरित्र पर उंगलियां उठाई जायेंगी। तू ये केस वापिस ले ले वरना...

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अगर तुम कहते हो कि घर मेरा है तो इसे अपना लगने तो दो…

जहां मेरे देर से आने को जिम्मेदारी समझा जाये, मौज नहीं और जहां मुझे भी थकने पर अदरक वाली चाय मिले, नसीहत नहीं...

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दुल्हन बनने का ख्वाब वह कब का छोड़ चुकी थी, पर किस्मत…

पर माँ बाप कहाँ मानने वाले होते हैं? कन्या दान किये बिना तो मोक्ष कैसे मिलेगा और बेटी के हाथ पीले किये बिना बूढ़े माँ बाप मरना नहीं चाहते थे।

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अरे शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा!

हमें शादी में कोई कमी नहीं चाहिए। सगाई की तैयारियां तो बिल्कुल भिखारियों की तरह करी थीं। नाक कटवा दी थी हमारी बिरादरी में तुम लोगों ने...

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ये मम्मियों वाले काम मेरे से नहीं होते…

जब से सोहम हुआ था निधि का अकेले अपने दोस्तों के साथ कहीं आना जाना बंद हो गया था, जबकि नीलाभ अपने दोस्तों के साथ घूमने निकल जाता।

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