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कथा और कविता
और मैं एक सीधी सास की सीधी बहु नहीं हूँ…

अरे! बहु तुम्हे क्या पता सास क्या होती है। वो तो तुम्हारी किस्मत अच्छी है जो मुझ जैसी सीधी सास मिली वरना तो लोग बहु के...

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और उस दिन सच में मेरी खुशियां दुगनी हो गयीं थीं…

जब भी कोई त्यौहार आता सुगंधा बहुत उदास हो जाती, सब कुछ होते हुए भी एक अजीब सी ख़ामोशी और खालीपन भरा था उसके जीवन में। 

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मानो परंपरा आगे बढ़ाने की, बाँधने की नहीं…

प्रश्न आने वाली पीढ़ियों को खोखली मान्यताओं से आज़ाद कर, वास्तविकता से जुड़ी परंपराओं को बिना उलझाए, संभाल-सहेज रख आगे बढ़ाने का है!

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टूट कर बिखरी स्त्रियां बन जाती हैं पत्थर सी…

वे हर नई टूट से पहले जानती हैं, टूटी हुई किरचों से मिले जख्मों की गहराई, और तैयार रखती हैं फाहे, आँसुओं और हौसलों से बने उस जादुई मलहम के...

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शादी के बाद मेरा मासिक धर्म ही मेरा सबसे बड़ा जुर्म बन गया था…

दर्द की सीमा या पैरामीटर होता तो कितना अच्छा होता, काश मैं उन सबको दर्द दिखा देती कि मैं झूठ नहीं थी। मेरे दर्द असिम और पीड़ा आसमान को छू रहे थे!

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हर महिला है अपने जीवन की एक सशक्त-योद्धा…

भूमिका मैंने देखी बचपन से ही हर नारी की, स्वयं को समझ जब आई वास्तविक ज़िंदगानी की। हर महिला जीवन करती हैं सिद्ध, पातीं हैं परमसिद्धि।

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