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कथा और कविता
हम फिर से जीऐंगे, पर अपने लिए…

हम फिर से उठेंगे, एक समाज की इज्जत की तरह नहीं, एक बराबरी पाने वाले व्यक्ति की तरह, हम, फिर से जीएँगे, एक साधन की तरह नहीं, पर अपने लिए।

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कहीं वो भी एक दो करवाचौथ के बाद उसी की तरह बदल तो नहीं जाएगा?

वो रखना भी चाहती थी व्रत, प्रेम के अभिभूत जो उसे मिल रहा था पर फिर विचार रुक जाता था। क्या वह उसके इस प्रेम तप के योग्य है?

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…और इस तरह सास बहु के इस रिश्ते को एक नया जीवन मिल जाएगा…

एक माँ सदा अच्छी है तो फिर सास क्यों बुरी है? एक बेटी सदा अच्छी है तो बहु ही क्यों बुरी है? जब दोनो ही करुणामई हैं, तो फिर सास बहु के रिश्ते से करुणा कहाँ गयी है।

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लड़कियाँ लक्ष्मी ही क्यूँ कहलाती हैं? सरस्वती क्यूं नहीं?

तुम शक्ति हो ये बात छुपाई जाती है। पहले देवी बनाते हैं समाज वाले फिर उसकी औकात बताई जाती है। तुम पराया 'धन' हो, बस ये बात बताई जाती है।

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बेटी से अपनी बहु की बुराई नहीं करते माँ…

धीरे धीरे माँ की बातों ने मोहनी की खूबसूरती की जगह उसकी बुराइयों ने लेना शुरू कर दिया। रूचि कुछ ज़वाब नहीं देती सिर्फ हाँ हूं कर फ़ोन रख देती।

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व्रत न रखने पर तुम्हें कुछ हो गया तो…

नैना मॉल जा कर मेहंदी लगवा आना और अच्छे से तैयार हो पूजा करना और कुछ भी खाना पीना मत नहीं तो नमन के ऊपर परेशानी आयेंगी।

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