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उसको लगता कि जब से उसकी जब से शादी हुई तब से आजादी खत्म हो गई थी। पति भी कभी कुछ नहीं बोलते लेकिन एक दिन ऐसा कुछ हुआ कि...
एक तो काजल अपने पिता की मौत को सहन नहीं कर पा रही थी, और पिता के जाते ही सब रिश्तेदारों ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया।
शादी पास आती है तो लड़कियाँ पार्लर भागती है और ये रिद्धि ऊपर छत पर क्या पढ़ती रहती है। इतनी पढ़ाई तो इसने दसवीं और बारहवीं में भी नहीं करी।
मुखरित था जो घर-आंगन पायल की रुनझुन से कल, आज सन्नाटे से बन उठा सुर-श्मशान क्यूँ? थम जाती कलम भी आज, ठहर जाती उंगलियां भी आज।
बड़े नाज़ों से पाला हमने इसको, हो जाए भूल कभी तो, बेटी समझ के भुला देना, सच कहते हैं आसान नहीं है, किसी को अपने जिगर का टुकड़ा देना...
बस्ते का बोझ तो उठा लूँगी, रिश्ते कैसे मैं संभालूंगी माँ! भाभी, बहु अभी नहीं बनना, डॉ, इंजीनियर बन जाने दो माँ। मुझे आगे बढ़ जाने दो माँ...
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