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कथा और कविता
प्यार का रंग भी अजीब होता है…

वो छत पर दिखती एक हलकी झलक, एक अजीब सी सिहरन दे जाती है। इस प्यार के रंग का खेल भी चेहरे पर अनेकों रंग ले आता है।

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मैं अपनी बहू की पहली दीवाली यादगार बनाना चाहती हूं…

दीवाली पर लक्ष्मी को खुश करने के साथ साथ गृहलक्ष्मी को भी खुश रखना चाहिए क्योंकि जब दोनो खुश होंगी तो खुशियां खुद-ब-खुद दुगनी हो जाएगी।

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मां, भाभी का भी तो मायका है ना…

मेरी सास तो बहुत अच्छी है माँ। बहुत ख्याल रखती हैं। इतनी अच्छी मेरी किस्मत है कि सास के रूप में मुझे दूसरी माँ मिल गई लेकिन भाभी... 

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पापा, मैं अपने घरवालों के लिए कमाना चाहती हूँ…

संध्या तुम्हारे कहने से पढ़ाई करा दी और अब क्या बेटी के पैसों का खाएंगे। बस यही दिन देखने रह गए थे। कहीं नहीं करनी नौकरी।

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मैं उस घर का दामाद हूं और तुम इस घर की बहू…

अभी दो दिन पहले जब खुद के भाभी-भाभी आये थे तब तो बहुत खुश थी। हर चीज का इंतजाम खुद देख रही थी। तब तुम्हें कोई परेशानी नहीं हुई।

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शादी के इतने सालों बाद पहली बार ये दिवाली लग रही है खुशियों की दिवाली…

वाह माँजी, आपको अपने बेटों की मेहनत दिखती है लेकिन बहुओं की नहीं। अगर वो दुकान में काम करते हैं तो हम भी तो रात दिन घर में करते हैं।

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