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कथा और कविता
आज मेरा बरसों पुराना सपना पूरा हो गया…

कभी देखा है ऐसा बांग्ला, ऐसी शानोशौकत। दो कौड़ी की औकात नहीं है और चले हैं झूला झूलने। मैंने कहा था आपको मत बुलाइये इन गँवारो को...

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मैं अपनी बेटी की शादी रिश्तेदारी में नहीं करना चाहती…

जब नई देवरानी ने मालती की तारीफ की, तो देवर बोले, "मालती भाभी को अपनाकर भैया ने जो उन पर एहसान किया, भाभी उसी अहसान को चुका रहीं हैं..."

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माँ, अब आपके दिखावटी प्यार पर मुझे भरोसा नहीं रहा…

मोनिका अपनी जेठानी को फूटी आंख भी पसंद नही करती थी। लेकिन मजबूरी में उसको जेठानी को बर्दाश्त करना होता और बनावटी मुस्कान बनाये रखना होता।

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मेरा सर उठा कर जीना डराता है तुम्हें…

क्यों उसका स्वयं के लिए जीना बन गया अपराध उसका? क्यों उसका सर उठा कर जीना रास ना आया तुम्हे? क़ुसूर क्या बस इतना था कि...

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सुनो, आज तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ…

कभी न टूटे अपना संग मेरे साथ यह कहना, जब मैं माँगू संग तुम्हारा, तुम भी दुआ करना कभी मेरी इन माँगों को बस आँखों से पढ़ लेना!

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समाज तेरे ताने-बाणों के रंग…

पैरों में समाज के ताने-बाने पहनाकर, लोग क्या कहेंगे से दहलीज़ ना पार करना सिखाया,मूरत पूरी रंग-बिरंगे रंगों से भरकर, बस एक रंग ना भरा...

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