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कभी देखा है ऐसा बांग्ला, ऐसी शानोशौकत। दो कौड़ी की औकात नहीं है और चले हैं झूला झूलने। मैंने कहा था आपको मत बुलाइये इन गँवारो को...
जब नई देवरानी ने मालती की तारीफ की, तो देवर बोले, "मालती भाभी को अपनाकर भैया ने जो उन पर एहसान किया, भाभी उसी अहसान को चुका रहीं हैं..."
मोनिका अपनी जेठानी को फूटी आंख भी पसंद नही करती थी। लेकिन मजबूरी में उसको जेठानी को बर्दाश्त करना होता और बनावटी मुस्कान बनाये रखना होता।
क्यों उसका स्वयं के लिए जीना बन गया अपराध उसका? क्यों उसका सर उठा कर जीना रास ना आया तुम्हे? क़ुसूर क्या बस इतना था कि...
कभी न टूटे अपना संग मेरे साथ यह कहना, जब मैं माँगू संग तुम्हारा, तुम भी दुआ करना कभी मेरी इन माँगों को बस आँखों से पढ़ लेना!
पैरों में समाज के ताने-बाने पहनाकर, लोग क्या कहेंगे से दहलीज़ ना पार करना सिखाया,मूरत पूरी रंग-बिरंगे रंगों से भरकर, बस एक रंग ना भरा...
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