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"दी, मैं बहुत खुश हूंँ आपके लिए। याद है आपको एक दिन हम लोग अकेले थे और आपने क्या कहा था? वो बात फांस सी चुभी थी मन में।"
रमा को ठंड के महीने में मारे डर के माथे से पसीने छूट रहे थे। उसे डर था कि अगर आज रूपा को कुछ भी हुआ तो उसका दोष उसे ही सिर पर आएगा।
ये प्रेम भी बेइंतहा करती है, ध्यान तुम रखो कि तुम तैयार हो, कभी उसके स्वाभिमान को ठेस न पहुंचाने को और न उसकी आजादी पर अंकुश लगाने को...
रात में ही जेठानी जब कमरे में छोड़ने आई थी, तभी कह गई थी कि कल सुबह रसोई की रस्म है। सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाना।
पर बेटियां जो करती हैं कन्यादान अपने दिल के अंदर किसी कोने में छिपी उस मासूम लड़की का तो नहीं होती उसके बाद पगफेरे की रस्म के लिए कोई जगह...
स्मृतियों से मगर एहसास जो जुड़ा वो कहाँ मिल पायेगा? हर गृहिणी संजोती है, संवारती है, घर का कोना कोना, कण-कण में बसती है, उसकी आत्मा!
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