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कथा और कविता
तुम्हारी बेबी दीदी अब बड़ी होने को है…

"दी, मैं बहुत खुश हूंँ आपके लिए। याद है आपको एक दिन हम लोग अकेले थे और आपने क्या कहा था? वो बात फांस सी चुभी थी मन में।"

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सासू माँ, आप मेरी जेठानी से ऐसे बात नहीं कर सकतीं…

रमा को ठंड के महीने में मारे डर के माथे से पसीने छूट रहे थे। उसे डर था कि अगर आज रूपा को कुछ भी हुआ तो उसका दोष उसे ही सिर पर आएगा।

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तुम्हारा साथ पाने के लिए मुझे खुद को बदलना होगा…

ये प्रेम भी बेइंतहा करती है, ध्यान तुम रखो कि तुम तैयार हो, कभी उसके स्वाभिमान को ठेस न पहुंचाने को और न उसकी आजादी पर अंकुश लगाने को...

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तुम आराम कर लो, बाकी काम मैं कर लूंगी…

रात में ही जेठानी जब कमरे में छोड़ने आई थी, तभी कह गई थी कि कल सुबह रसोई की रस्म है। सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाना।

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बेटियाँ भी करती हैं एक कन्या दान…

पर बेटियां जो करती हैं कन्यादान अपने दिल के अंदर किसी कोने में छिपी उस मासूम लड़की का तो नहीं होती उसके बाद पगफेरे की रस्म के लिए कोई जगह...

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घर के कोने-कोने में बस्ती है मेरी आत्मा…

स्मृतियों से मगर एहसास जो जुड़ा वो कहाँ मिल पायेगा? हर गृहिणी संजोती है, संवारती है, घर का कोना कोना, कण-कण में बसती है, उसकी आत्मा!

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