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सामाजिक मुद्दे
अगर आज भी मैं पहले जैसी होती, तो क्या आप…

ये तो रूचि है! उसके कॉलेज की सबसे खूबसूरत और स्मार्ट लड़की और तो और उसकी क्रश भी। वैसे क्रश तो वो बहुत लोगों की थी पर किसी को भाव नहीं देती थी।

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भाई साहब, मेरी बेटी तभी सुरक्षित होगी जब आप जैसे लोगों की नज़र बदलेगी…

रमा की बात सुनकर उसके ननद नन्दोई और सास के चेहरे का रंग उड़ गया और अजय ने धीरे से मुस्कुरा कर मौन सहमति रमा को दी।

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मैं आगे बढ़ रही हूँ लेकिन ‘श्रीमान’ की सोच अभी भी वहीं की वहीं है…

क्या घर और बाहर महिलाओं के योगदान के एवज़ में सामाजिक स्तर पर उनको लेकर मान्यताओं में बदलाव आया है? उनके बारे में पुरुषों की सोच बदली है?

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अगर ये घर दादा-दादी का है तो नाना-नानी का भी है…

आज अपनी बेटी के नौकरी छोड़ने की बात सुन दोनों बेचैन हो उठे, अपनी बच्ची को इस मुकाम तक पहुंचाने में बहुत कठिन तपस्या की थी। 

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माँजी, मेरी डिलीवरी पर आपके घर के काम करने मेरी बहन नहीं आएगी…

पल्लवी जब घर आयी तब उसकी दोनों ननदे घर पर हीं थी। उमाजी ने जुबान में मीठी चाशनी घोलकर पल्लवी से बोल-बोल कर सारे काम कराने लगी।

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माँजी, आपकी प्रेग्नेंट बहू सिर्फ उसके मायके वालों की ज़िम्मेदारी नहीं है…

"माँजी क्या सारे फर्ज सिर्फ बच्चे की मौसी के होते हैं। तो बाकी के रिश्तों का क्या? घर बैठी बुआ और दादी का कोई फ़र्ज़ नहीं है क्या?"

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