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निलेश के लिए यह रोज का था। पर रश्मी को अचरज इस बात से होता था कि कैसे कोई इंसान अपने किये को इतना अनदेखा कर सकता है?
माँ बहुत कोशिश करतीं थीं कि आंसू ना बहे, खासकर बच्चों के सामने मगर जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता था तो आंसू अपने आप ही निकल आते...
आप में से कितनों ने अपनी बेटियों को ये कहा, "वो तुमसे प्यार करते हैं, केयर करते हैं, तुम्हारी सुरक्षा चाहते हैं इसलिए ये सब करते हैं।"
तुम्हें कोई हक़ नहीं बनता कि हमारे बराबर बैठो, हमारे बर्तन में खाना खाओ, या हमारे बाथरूम को इस्तेमाल करो। तुम्हारी ये सारी चीज़ें अलग हैं...
"अरे! शादी के बाद ससुराल वालों को नौकरी करानी होगी तो वो लोग तुझे आगे पढ़ाएंगे। वरना उनकी मर्जी। शादी के बाद अपने घर जाकर अपनी मर्जी चलाते रहना।"
अपनी शांत और प्यारी बिटिया को ऐसे आक्रोश में देख एक पल तो रूचि भी सिहर उठी। बिना कुछ सवाल ज़वाब दिये रूचि कमरे से बाहर आ गई।
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