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दूसरों की बेटियां सिर्फ एक शरीर मात्र हैं, शायद एक उपभोग की वस्तु, जिसे सब लोग, खासकर के 'मर्द' जैसे भी देखते हैं, कुछ भी कहते हैं, और उनके साथ कुछ भी कर कर सकते हैं।
शालिनी ने खूबसूरत डोली का इंतज़ाम किया था, जिसमें बिठा कर श्रद्धा को घर तक लाया गया और ढोल नगाड़ों के साथ उसका गृह प्रवेश हो गया।
समाज की ये सोच बड़ी दोगली लगती शुभ्रा को, दो बेटे वाला इंसान अगर बेटी की इच्छा से तीसरा बच्चा करे तो उसे महानता का खिताब मिलता है...
“जब आपका बेटा था तो आपने मुझे रसोई और घर में झोंक दिया और जब वो चला गया तो मुझसे नौकरी करने को कह रहे हैं? क्या चाहते हैं आप मेरे से?"
"मेरी तबियत ठीक नहीं चल रही, फिर भी में काम करती हूँ। क्या मेरे प्रति तुम लोगों को कोई सवेंदना नहीं रही? और तुम खुद को मेरा परिवार कहते हो?"
पिछले दिनों अपनी बहन से मिलने गई थी। छुटकी ने चाय पकड़ाते हुए कहा, "दीदी! लीजिए आप के लिए मलाई वाले टोस्ट। आप को बहुत पसंद हैं न?"
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